15 वर्ष बाद इस लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री पद की पटकथा लिखेंगीं बहन मायावती
15 साल बाद चुनावी रण में उतर सकती हैं मायावती
2004 में आखिरी बार मायावती ने अकबरपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीती थीं. 2017 में राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद से वर्तमान में मायावती किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं.
गठबंधन के ऐलान के साथ ही उत्तर प्रदेश में सपा और बसपाको बीजेपी के सामने कड़ी चुनौती माना जा रहा है. चुनाव में गठबंधन से सपा और बसपा 38-38 सीटों पर मैदान में उतरेंगीं. सपा प्रमुख अखिलेश यादव आजमगढ़ से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. उधर बसपा सुप्रीमो मायावती के बारे में भी खबर है कि वह भी 15 साल बाद चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही हैं।
इस बात का इशारा खुद मायावती ने सपा बसपा गठबंधन के ऐलान के दौरान किया. दरअसल गठबंधन के ऐलान के दौरान बसपा सुप्रीमो मायावती से सवाल किया गया कि क्या आप लोकसभा चुनाव लड़ेंगीं? और किसी सीट से चुनाव लड़ेंगीं? इस पर मायावती ने बस इतना कहा कि इस बारे में जल्द जानकारी मिल जाएगी.बता दें 2004 में आखिरी बार मायावती ने अकबरपुर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था और जीती थीं. 2017 में राज्यसभा से इस्तीफा देने के बाद से वर्तमान में मायावती किसी भी सदन की सदस्य नहीं हैं. सूत्रों के अनुसार मायावती को चुनाव लड़ाने के लिए बसपा नेताओं की पहली पसंद बिजनौर की नगीना सीट है. ये सुरक्षित संसदीय सीट है।
खास बात ये है कि मायावती 1989 में बिजनौर की संसदीय सीट से पहली बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची थीं. बसपा नेताओं के अनुसार परिसीमन के बाद अकबरपुर और बिजनौर सुरक्षित सीट नहीं रह गई हैं. और नए परिसीमन में अब पूर्व की बिजनौर सीट का करीब 60 फीसदी हिस्सा नगीना सीट में आता है.लगभग 15 लाख वोटर वाली नगीना सीट में अनुसूचित जातियों के हाथ सत्ता की चाबी मानी जाती है. इस सीट पर करीब 4 लाख से ज्यादा मुस्लिम मतदाता हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में नगीना से बीजेपी जीती थी. लेकिन सपा यहां 29 फीसद वोट के साथ दूसरे और 26 फीसद वोट लेकर बसपा तीसरे पायदान पर रही थी. माना ये भी जा रहा है कि बसपा इसके लिए सपा को एक ऐसी सीट हाथरस भी दे सकती है, जहां बसपा दूसरे स्थान पर रही थी.मायावती ने कैराना से लड़ा था, पहला चुनाव वह 1984 का वक्त था और पहला मौका था, जब बहुजन समाज पार्टी के संस्थापक कांशीराम और मायावती दोनों ही चुनाव मैदान में निर्दलीय खड़े थे. मायावती यूपी की कैराना सीट से चुनाव लड़ीं. इस सीट पर जीत तो कांग्रेस प्रत्याशी अख्तर हसन की हुई, लेकिन तीसरे नम्बर पर रहने के बावजूद मायावती ने भी अपनी दमदार उपस्थिति दर्ज करायी. इस चुनाव में मायावती ने 44,335 वोट पाए. कांशीराम भी छत्तीसगढ़ की जांगीर सीट से चुनाव हार गए.फिर आया 1985 में बिजनौर का उपचुनाव. इस उप चुनाव में मायावती 61,504 वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रही, जबकि विजेता जगजीवन राम की पुत्री मीरा कुमार रहीं. दलित नेता रामविलास पासवान महज 5000 वोटों से चुनाव हार गए. 1987 में मायावती हरिद्वार सीट से चुनाव लड़ीं. 1,25,399 वोटों के साथ मायावती दूसरे स्थान पर रहीं, जबकि रामविलास पासवान तीसरे स्थान पर रहे.साल 1989 में मायावती को बिजनौर से जीत हासिल हुई. मायावती को कुल 183,189 वोट मिले थे और हार जीत का अंतर 8,879 वोटों का था. अप्रैल 1994 में वह पहली बार राज्यसभा की सदस्य चुनी गईं. इसके बाद उन्होंने 1996 से 1998 तक यूपी एसेंबली में विधायक रहीं।
1998 में मायावती ने 12वीं लोकसभा के चुनाव में अकबरपुर सीट से संसद पहुुंचीं. इसके बाद 1999 में वह 13वीं लोकसभा की सदस्य चुनी गईें. इसके बाद 2002 में वह यूपी विधानपरिषद की सदस्य चुनी गईं. उन्होंने अकबरपुर सीट से इस्तीफा दे दिया. वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनीं.2004 में मायावती एक बार फिर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ीं और 14वीं लोकसभा की सदस्य बनीं. लेकिन 2004 में ही उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और राज्यसभा चली गईं.
इसके बाद मायावती ने चुनावी राजनीति से खुद को दूर कर लिया. वह यूपी में 2007 में मुख्यमंत्री रहने के दौरान विधान परिषद सदस्य ही रहीं. यूपी में सत्ता जाने के बाद वह राज्यसभा चली गईें. 2017 में उन्होंने अपना कार्यकाल खत्म होने से कुछ समय पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
2004 में मायावती एक बार फिर अकबरपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ीं और 14वीं लोकसभा की सदस्य बनीं. लेकिन 2004 में ही उन्होंने लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया और राज्यसभा चली गईं.इसके बाद मायावती ने चुनावी राजनीति से खुद को दूर कर लिया. वह यूपी में 2007 में मुख्यमंत्री रहने के दौरान विधान परिषद सदस्य ही रहीं. यूपी में सत्ता जाने के बाद वह राज्यसभा चली गईें. 2017 में उन्होंने अपना कार्यकाल खत्म होने से कुछ समय पहले ही इस्तीफा दे दिया था।
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