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जब साईमन कमीशन भारत आया तो भगत सिंह ने क्यों लगाए थे विरोध में नारे

जून, 1928 में भगत सिंह का एक “अछूत का सवाल” नामक लेख “किरती” पत्रिका में छपा था। इस लेख में वो सिंध के “नूर मुहम्मद” साब जो बंबई परिषद के सदस्य थे, उनके एक 1926 में दिए गए वक्तव्य का समर्थन करते हैं। 


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जिसमें लिखा था –

“जब तुम एक इन्सान को पीने के लिए पानी देने से भी इन्कार करते हो, जब तुम उन्हें स्कूल में भी पढ़ने नहीं देते तो तुम्हें क्या अधिकार है कि अपने लिए अधिक अधिकारों की माँग करो? जब तुम एक इन्सान को समान अधिकार देने से भी इन्कार करते हो तो तुम अधिक राजनीतिक अधिकार माँगने के कैसे अधिकारी बन गये?”

यानि हिन्दू अंग्रेजों के समक्ष अपनी तमाम माँगे रखते हैं पर अछूत/दलित की माँगों का विरोध करते हैं फिर वो किस अधिकार से अंग्रेजों से अपनी माँगे मंगवाने पर जोर देते हैं?

इसी लेख में भगतसिंह इस बात पर भी सहमत नजर आते हैं कि अछूतों की जनसंख्या मुस्लिमों के बराबर है तो उन्हें भी मुस्लिमों की तरह अधिकार मिलने चाहिए। वो आगे लिखते हैं कि अछूतों का अपना जन-प्रतिनिधि होना चाहिए यानि हम कह सकते हैं कि वो अछूतों के लिए पृथक निर्वाचन प्रणाली के समर्थन में भी थे।

भगतसिंह सहित 22 लोगों ने नवम्बर, 1927 में लाला लाजपतराय को भी एक “खुला पत्र” भेजा था जिसमें उन्होंने लाजपतराय को उनकी नीतियों का विरोध करते हुए जमकर कोसा है उन्होंने कहा है कि वो केवल भाषणबाजी करते हैं इसके अलावा कुछ नहीं।

इसके अलावा 17 दिसम्बर, 1928 को जे.पी. सॉण्डर्स को मारकर 18 दिसम्बर को भगतसिंह की “हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियशन” की तरफ से पहला नोटिस बाँटा गया, उसके बाद 23 दिसम्बर को दूसरा नोटिस बाँटा। जिसमें बताया गया कि उन्होेंने सॉण्डर्स को मारकर लाला लाजपतराय की मौत का बदला लिया है। इसके अलावा उन्होंने लाजपतराय की मौत को देश का बहुत बड़ा अपमान भी बताया। साथ ही इन नोटिसों में यह भी दर्शाया गया कि दलितों और पीड़ितों की समस्याओं का कारण ब्रिटिश सरकार है और संसार की सबसे ज्यादा अत्याचारी सरकार भी यानि ब्राह्मणों से भी ज्यादा अत्याचारी।

निःसंदेह भगतसिंह और उनकी मंडली के लेखनों में क्रांतिकारी विचार नजर आते हैं। पर फिर भी मेरे कुछ सवाल हैं यदि किसी के पास उन सवालोंं के जवाब हो तो स्वागत है…

भगत सिंह ने किया था विरोध


सबसे पहला सवाल यह है कि फरवरी, 1928 में भारत में जब साइमन कमीशन आया जो कि संवैधानिक सुधारों के जरिये अछूतों की स्थिति सुधारना चाहता था उसका भगतसिंह ने विरोध क्यों किया?

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जबकि वो नूर मुहम्मद साब की बात के समर्थक थे जिसके अनुसार हिन्दू अंग्रेजों के सामने अपनी माँग रखने तक के अधिकारी नहीं थे…! यदि कोई अब ये बात कहेगा कि भगतसिंह को यह बात पता नहीं थी कि आयोग अछूतों की स्थिति सुधारना चाहता था तो ये हास्यास्पद है। क्योंकि बाबासाहेब सहित तमाम बहुजन नेता इस आयोग के समर्थन में डटकर खड़े थे। लॉर्ड बर्केनहेड ने तो लगभग दस महीने पहले ही अछूतों की समस्या का निवारण करने की बात बोल दी थी। साइमन कमीशन के सम्मुख 18 दलित संगठनों ने अपने साक्ष्य प्रस्तुत किए थे, जिनमें से 16 संगठनों ने पृथक निर्वाचन प्रणाली की माँग रखी थी। बाबासाहेब ने अल्पसंख्यकों की रक्षा हेतु वीटो पावर, विधायिका, निकायों, विश्वविद्यालयों आदि में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण, नौकरियों में छूट, मंत्रीमंडल में प्रतिनिधित्व, शिक्षा में विशेष अनुदान आदि माँगे रखी थी जिस पर आयोग का रवैया सकारात्मक था।

आखिर भगतसिंह भी तो यही सब चाहते थे अछूतों के लिए, फिर कहाँ दिक्कत आ गई उन्हें?

दूसरा सवाल वो लाला लाजपतराय के विरोधी थे फिर अचानक उनके सहयोगी कैसे हो गए? यहाँ तक कि लाला लाजपतराय जैसे ब्राह्मणवादी की मौत को देश का अपमान भी बता दिया और उसके बाद सॉण्डर्स को मारकर उनकी मौत का बदला भी ले लिया, इतना रौष क्यों?

तीसरा सवाल अछूतों पर सदियों से ब्राह्मणों/सवर्णों ने अत्याचार किए और जारी है फिर भी संसार की सबसे ज्यादा अत्याचारी ब्रिटिश सरकार नजर आती है, क्या उन्हें ब्राह्मणों/सवर्णों द्वारा किया जाने वाला अत्याचार नजर नहीं आता था?

चौथा सवाल भगतसिंह मार्क्स और लेनिन से प्रभावित थे बताया जाता है, जिसके मुताबिक उनका पहला कर्तव्य “सर्वहारा” जो कि भारत में अछूत वर्ग है उसे साथ लेकर चलना और प्रतिनिधित्व देना होता है। भगतसिंह द्वारा सबसे पहला बनाया गया संगठन “नौजवान भारत सभा” और बाद में “हिन्दुस्तान सोसलिस्ट रिपब्लिकन एसोसियशन” में कितने सर्वहारा/दलित प्रमुख थे?

~ लेखक युवा कार्यकर्ता है
(सत्येंद्र बौद्ध)

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