जब मान्यवर कांशीराम साहब का परिनिर्वाण हुआ तो बैंक में खाता तक नही था
आप एक बाड़े में 50 खूंटे अलग अलग गाड़ दो और सभी खूटों से कोई भी एक एक पशु बांध दो।
जब आप किसी बर्तन में चारा लेकर जाएंगे तो सभी पशुओं की नजर आपकी तरफ होगी।
आप किसी भी एक पशु के आगे वह चारे वाला बर्तन रखोगे तो वह तुरंत ही नीचे गर्दन करके जल्दी जल्दी खाना शुरू कर देगा, वह पशु यह बिलकुल भी नहीं देखेगा की मेरे बाकी साथियों के पास खाने के लिए चारा पहुंचा भी है या नहीं, बस वह तो गबड़ गबड़ अकेला ही खाए जा रहा है।
यदि आपका समाज भूखा है और आप उस पशु की तरह अकेले ही खाये जा रहे हैं तो आपका नाम जनगणना सूची की बजाय पशु गणना वाली सूची में होना चाहिए।
कैसे जाना समाज को
साहब कांशीराम जी DRDO में सहायक वैज्ञानिक बनने तक बाबा साहब अम्बेडकर के मिशन से अनभिज्ञ थे, लेकिन जब उनको बाबा साहब के त्याग समर्पण और जीवन दर्शन का ज्ञान हुआ तो उन्हें महसूस हुआ कि मेरा समाज तो खूंटे से भूखा ही बंधा हुआ है और मैं अधिकारी बनकर मौज उड़ा रहा हूँ एवं उस पशु की भाँति अकेला ही पेट भरने में लगा हुआ हूँ, धिक्कार है मुझे अपने आप पर।
साहब कांसीराम जी ने उसी दिन अधिकारी की नौकरी छोड़ दी एवं घर परिवार सभी छोड़ कर निकल पड़े बहुजन समाज (obc/sc/st और इन्हीं में से धर्मपरिवर्तित minority) को पशु रूपी जीवन से मुक्ति दिलाने के लिए पूरे जीवन भर जातियों में बंटे हुए समाज को संगठित कर बहुजन समाज बनाने के कार्य में लगे रहे।
परिनिर्वाण के वक़्त क्या था कांशीराम जी के पास
जब उनका परिनिर्वाण हुआ तो उनके नाम एक गज भी जमीन नहीं थी, बैंक में खाता तक नहीं था व उनके नाम किसी भी प्रकार की कोई चल या अचल सम्पत्ति नहीं थी, यदि उनके पास कुछ था तो वह बहुजन समाज था।
बहुजन नायक को शतशत नमन।
साहब कांशीराम अमर रहें अमर रहें
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