सम्राट कनिष्क के साथ जिन लोगों ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी वह सभी जाटों के पूर्वज थे
जाट जाति प्रछन्न बौद्ध है
आज का यह सब्जेक्ट बेहद कठिन है,जिसमें जाट जाति को प्रछन्न बौद्ध बताया गया है, यह किताब लिखी है डॉ० धर्मकीर्ति जी ने।
डॉ० धर्मकीर्ति की ने 3 विषयों पर पीएचडी की है ( मनोविज्ञान,दर्शन और बौद्ध विद्या)।
डॉ० धर्मकीर्ति दर्शन से डी.लिट् भी हैं। और देश-विदेशों से करीब 21 राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय अवार्डों से सम्मानित है ।
डॉ० धर्मकीर्ति की ने 3 विषयों पर पीएचडी की है ( मनोविज्ञान,दर्शन और बौद्ध विद्या)।
डॉ० धर्मकीर्ति दर्शन से डी.लिट् भी हैं। और देश-विदेशों से करीब 21 राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय अवार्डों से सम्मानित है ।
इस पुस्तक को छापा है सम्यक प्रकाशन से शांति स्वरूप बौद्ध ने जिसे बेहतर तरीके से शब्दों का प्रयोग किया है , शांति स्वरूप बौद्ध जी बहुजन साहित्य के बड़े प्रकाशक हैं ।
इस किताब की प्राक्कथन लिखी है चौधरी वीरेंद्र सिंह ने जो सेवानिवृत्त आईएएस हैं।
चौधरी वीरेंद्र सिंह ने लिखा है - यह शोध प्रबंधन भले ही आकार की दृष्टि से छोटा हो, लेकिन शोध की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण प्रबंध है।
मैं डॉक्टर धर्मकीर्ति को मनोवैज्ञानिक,साहित्यकार, शिक्षाशास्त्री, दार्शनिक के रूप में अनेक वर्षों से जानता था, लेकिन प्राचीन भारत के इतिहास के बारे में इनकी इतनी पैनी दृष्टि होगी , यह विचार मेरे मन मे कभी कौंधा भी नही था। यह शोध प्रबंध लीक से हटकर और भारतीय इतिहासकारों की मक्खी पर मक्खी मारने की प्रवृत्ति से भिन्न , विचारोत्पादक एवं नेत्र खोलक है।
आज से लगभग एक वर्ष पूर्व डॉ० धर्मकीर्ति से इस विषय पर संछिप्त व महत्वपूर्ण चर्चा अवश्य हुई थी, लेकिन इनके विचार इतिहास की मान्यताओं के अनुकूल नही थे , इसलिए पहले इनके विचार कुछ अटपटे और अजीब किस्म के अवश्य लगे थे , लेकिन जब मैंने इनके तर्कों को सुना और अनुभव किया कि बौद्ध धर्म के पंचशील, अष्टांगिक मार्ग, और इनका व्यवहारिक रूप आज भी जाट जाति के संस्कारों में पाया जाता है तो अत्यंत आश्चर्य हुआ। इतना ही नही बल्कि बुद्ध के द्वारा प्रतिपादित कर्म का सिद्धांत भी जाटों के जीवन का आवश्यक अंग एवं चलन बन चुका है, इन सब बातों को जानकर मैं चकित रह गया और मेरे हर्ष की सीमा नहीं रही, इसके उपरांत में इस विषय पर डॉक्टर धर्मकीर्ति से सहमत हो गया कि प्राचीन काल में सम्राट कनिष्क के साथ जिन लोगों ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी वह सभी जाटों के पूर्वज थे।
राष्ट्रीय एकता एवं समाज में सदभावना उत्तपन्न करने के उद्देश्य से लिखी गयी है यह पुस्तक अत्यंत महत्वपूर्ण व उपयोगी सिद्ध होगी ,ऐसा मेरा दृढ़ विश्वास है।
अंत मे इस शोध प्रबंध के लिए डॉ० धर्मकीर्ति को साधुवाद देता हूँ।
चौधरी वीरेंद्र सिंह
आईएएस(रि.)
201 राउज एवेन्यू
दीन दयाल उपाध्याय मार्ग
नई दिल्ली।
आईएएस(रि.)
201 राउज एवेन्यू
दीन दयाल उपाध्याय मार्ग
नई दिल्ली।
यह महत्वपूर्ण पुस्तक है , आप इसे सम्यक प्रकाशन दिल्ली से मंगा सकते हैं।
Jaat jaati bhodh h iski e book nahi h kya jo download kar sake
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