ठाकुरों की खाट पर नही बैठ सकते थे जाट,आज भूल रहे अपने महापुरुषों को
चौधरी अजीत सिंह का समर्थन या विरोध
आज तमाम जाट नवयुवक चौधरी अजित सिंह के प्रति गलत शब्दावली का प्रयोग करके दुसरे दलों के लोगों की वाहवाही में अपनी शान समझ रहे हैं।पुराना इतिहास बेहद तीखा रहा है समाज का
इन युवाओं की गलती भी कहां है। इन बच्चों ने वो दिन नही देखे हैं । देखे होते तो अपने पूर्वजों को दाने दाने का मोहताज बना देने वालों को अपना आका मानकर अपने मसीहाओं को जूते मारने की जुर्रत ना करते।1967 तक ये हालत रही है कि अगहन यानि असौज माह के बाद चैत्र माह तक 95 फीसदी घरों में खाने का अनाज नही बचता था। पता नहीं क्या क्या आलू शकर कंद सिंघाडे ज्वार बाजरा होता था खाने में। 1967 में बी केडी बनने के बाद सभी दलों में जाटों को दुलारने की होड शुरु हुई । हरियाणा मे जाट घोडू और भैंस की पूंछ होते थे तो राजस्थान मे ठाकुरों की चारपाई पर नही बैठ सकते थे ये जाट ।अछूत माने जाते थे ।
फिर बेहद शानदार रहा सफर
मात्र दस साल में यानि 1977 में यह हालत बदली कि राजनीति की धुरी ही जाट बन गया ।हर छोटे बडे फैसले में जाट की पूछ हुई ।नतीजा यह कि अगले दो साल बाद ही एक किसान एक जाट को सबसे बडी कुर्सी पर बिठाना सियासत की मजबूरी हो गयी ।आप ही बताऐं कितने जाट रहे हैं कांग्रेस सेवा दल में,विश्व हिन्दू परिषद मे।,बजरंगदल,हिन्दू वाहिनी और आर एस एस मूल कैडर में ।आज वो कहावत को चरितार्थ ना करो जाट युवाओं कि भौंकना सिखाया तो फाडने को आया।उस महान विभूति की विरासत के इमानदार झण्डा बरदार को समर्थन नही दे सकते तो कम से कम अपशब्दों से जलील तो मत करो । मुजफ्फरनगर बागपत मथुरा और गठबंधन को हर एक लोकसभा सीट पर जितवाने का यही आखिरी मौका है आपके पास।"
पलीज कमेंट जरूर दे" ओर अपने विचार साझा करे
अंजली सिंह
ये
आपको ज्ञात हो कि यूपी में लोकसभा चुनाव के लिए सपा बसपा रालोद ने गठबंधन किया है।
Bahut badiya gathbandhan jeet rha h
ReplyDelete