जो फिल्मी सितारे और क्रिकेटर राजनीति में आते हैं क्या वो कार्यकर्ताओं को गधा समझते हैं
नेता और कार्यकर्ताओं का आपस मे तालमेल
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जो लोग कार्यकर्ता और लोकतंत्र की बात करते हैं, वो चुनावों में हेमा मालिनी, बाबुल सुप्रियो, रूपा गांगुली, स्मृति ईरानी, शत्रुघ्न सिन्हा, मनोज तिवारी, रवि किशन, परेश रावल, किरन खेर, विनोद खन्ना जैसे फिल्मी सितारों और गौतम गंभीर, कीर्ति आजाद, चौहान जैसे खिलाड़ियों को लोकसभा विधानसभा चुनाव लड़वा देते हैं । जबकि चुनाव लड़ने से पहले इनका राजनीति और कार्यकर्ताओं से कोई लेना देना नही होता । मेहनत कार्यकर्ता करता है और ये पका पकाया खाने आ जाते हैं । खेलों और फिल्मों के जरिये जो प्रसिद्धि पाते हैं, उसको भुनाकर सांसद विधायक बन जाते हैं । फिर आराम से 5 साल ऐश करते हैं या फिर एक्टिंग में मशगूल हो जाते हैं । बाद में जनता इनकी गुमशुदगी के पोस्टर लगाती फिरती है । इनको ढूंढने के लिए इनाम भी घोषित किए जाते हैं लेकिन ये नही सुधरते । राजनीति में इनके आने का ध्येय कोई जनता के मुद्दे उठाना नही होता । जनता के लिए काम नही करना होता बल्कि इनका ध्येय आय का एक अतिरिक्त स्रोत पैदा करना होता है ।
उद्देश्य क्या होता है
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राजनीतिक दलों का भी उद्देश्य इनकी लोकप्रियता के जरिए सिर्फ अपनी लोकसभा, विधानसभा सदस्यों की संख्या बढ़ाना होता है । उनके लिए ये एक खूंटे पर बंधे बैल की तरह होते हैं जिसको जरूरत पड़ने पर व्हिप जारी कर अपने हितों के लिए जोता जा सके । इस चीज को आप रेखा और सचिन तेंदुलकर के उदाहरण से भी समझ सकते हैं जिनकी उपस्थिति सांसद बनने के बाद नगण्य रही और इन्होंने शायद ही कोई मुद्दा सदन में उठाया हो । जाहिर है राजैतिक दलों के लिए राजनीति सिर्फ नंबर गेम और अभिनेताओं के लिए पैसे कमाने का जरिया मात्र होता है और कार्यकर्ता सिर्फ गधे होते हैं जो सिर्फ इनका बोझा ढोने के काम आते हैं ।
सुधीर कुमार
सामाजिक कार्यकर्ता
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