जल,जंगल,जमीन छीनकर इस देश के मूलनिवासी आदिवासियों को हम किस हाल में छोड़ेंगे?
जल,जंगल,जमीन छीनकर इस देश के मूलनिवासी आदिवासियों को हम किस हाल में छोड़ेंगे?....
हम सैकड़ो वर्ष से जिस भूमि पर काबिज हैं वह पुश्त दर पुश्त हमारी चली आ रही है।हम जिस मकान पर काबिज थे वह छप्पर,खपरैल,ऐल्बेस्ट्स से होते हुये पक्के छत के रूप में हमारी है।हम जिस ब्यापार में थे वह पुश्तैनी ब्यापार हमारे पास है लेकिन आदि काल से जंगल मे रह रहे आदिवासियों का न जंगल है,न जमीन है,न नदी है,न पहाड़ है और न ही कोई दूसरा अधिकार है क्योकि इसे निर्धारित करने का सर्वाधिकार ठेका हम सभ्य लोगो के पास है।
बड़ा अजीब मंजर है।जो लोग सभ्य हैं वे बड़ी कुटिलता से कथित असभ्य लोगो की निश्छलता का फायदा उठाते हुये जल,जंगल,जमीन,पहाड़ आदि सरकार का घोषित कर इन आदिवासी लोगो को उपरोक्त संसाधनों से महरूम कर दिये है।
क्या न्यायालय,क्या सरकार,क्या स्वयंसेवी संस्थाए या क्या कोई सहृदय व्यक्ति,सभी के सभी इन आदिवासियों के प्रति निष्ठुरता की सारी सरहदे पार कर जाते हैं जो सर्वथा अनुचित है।
न्याय की कसौटी पर यदि कसा जाय तो क्या यह सत्य नही होगा कि जिस तरीके से हम जिन चीजों पर पुश्त दर पुश्त काबिज हैं यदि वे हमारे हैं तो जंगलों में जीवन यापन कर रहे आदिवासियों के ये जंगलात क्यो नही हैं?
कभी न्यायालय,कभी सरकार,कभी पुलिस तो कभी प्रशासन,जिन्हें जब इच्छा तब इन अधिकार विहीन रखे गए लोगो को हम बेदखल कर देते हैं,उजाड़ कर बेघर कर देते हैं,नक्सली कह इनकाउंटर कर देते हैं या इनके गुस्सा होने पर इनके द्वारा हथियार उठा लेने के बाद हम इन्हें बुरी तरह से कुचल देते हैं जिसमे दोनों पक्ष की जन-धन हानि होती है।
क्या कभी हम यह सोचते हैं कि उन आदिवासियों पर क्या बीतती होगी जब धूप,लू,बारिश,ओला,शीत लहर,ठंड में वे हांफते-कांपते,भीगते-भागते होंगे?क्या हमें यह अहसास है कि वे जंगल आधारित लोग कैसे पहनते,खाते व पीते होंगे?परिवहन,दवा,पढ़ाई का इंतजाम,पक्के मकान आदि देने की बजाय हम इन आदिवासियों को जंगल निकाला कर इन्हें किस हाल में रखना चाहते हैं?यह आदिवासी समुदाय कोई जिंदा इंसान न होकर हमारे लिए फुटबाल जैसा हो गया है जिसे हम जहां चाह रहे हैं वहीं लतिया रहे हैं जो अफसोसनाक है।
हे सभ्य समाज के ठेकेदार लोगों, सरकारों,न्यायाधीशों!जरा ठंडे दिमाग से सोचिए कि इंसानियत,न्याय व सँविधान का तकाजा क्या है?क्या इन बिना पढ़े-लिखे,असंगठित,अधिकार बिहीन लोगो की त्रासदी में ही हमारी खुशी है या हमें इन्हें खुद की तरह अधिकार सम्पन्न बनाना चाहिए?न्याय करिए वरना देश सदैव अशांत रहेगा।
-चन्द्रभूषण सिंह यादव
प्रधान संपादक-"यादव शक्ति"
कंट्रीब्यूटिंग एडीटर-"सोशलिस्ट फैक्टर"
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